272/2024
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
काशी शंभु-त्रिशूल पर, बसी सकल सामोद।
विश्वनाथ शंकर करें, वास जहाँ ले गोद।।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में, विश्वनाथ शुचि धाम।
सबसे पावन तीर्थ है, शिव जी सदा अकाम।।
पश्चिम गंगा तीर पर, विश्वनाथ का धाम।
जगती को पावन करे, शिव गौरी का नाम।।
विश्वेश्वर के नाम से, जगती में विख्यात।
विश्वनाथ मंदिर सदा,कहे 'शुभम्' यह बात।।
प्रकट पूर्ण ब्रह्मांड के,स्वामी शिव भगवान।
विश्वनाथ कहते सभी, मानव भक्त सुजान।।
शिव संस्कृति में अर्चना, पूजा का शुचि भाग।
विश्वनाथ है केंद्र में,क्यों न मनुज तू जाग ??
विश्वनाथ भगवान के , दर्शन का शुभ लाभ।
लिया शंकराचार्य ने, पीकर पावन आभ।।
एकनाथ जी संत भी, आए तुलसीदास।
विश्वनाथ - दर्शन किए,कृपा प्राप्ति की आस।।
माँ गौरी शिव शंभु का,यहीं आदि शुभ वास।
विश्वनाथ की ख्याति का,प्रसरित जगत सुहास।।
प्रलय काल आए भले, कभी न होता लोप।
विश्वनाथ भगवान जी,दिखलाते निज ओप।।
'शुभम्' हृदय में जागता, मन में शुचि विश्वास।
विश्वनाथ भगवान के ,शुभ दर्शन की आस।।
शुभमस्तु !
17.06.2024● 1.30 प०मा०
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