275/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चलो नहाने निर्मल गंगा।
ताप नशाये अपने गंगा।।
जेठ मास की धूप सताए,
कष्टहारिणी शीतल गंगा।
प्यास बुझाए अन्न उगाए,
सुघर शाक फल देती गंगा।
खग वन जीव किलोल करें नित,
सुख बरसाए कलकल गंगा।
देवनदी सुरसरि कहलाती,
भागीरथी नदीश्वरि गंगा।
गायत्री गोमाता पावन,
संग त्रिपथगा गोचर गंगा।
'शुभम' न कचरा फेंको कोई,
जीवनदायिनि जी भर गंगा।
शुभमस्तु !
18.06.2024●5.00आ०मा०
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