270/2024
समांत : आर
पदांत :अपदांत
मात्राभार : 24
मात्रा पतन : शून्य
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जीवन तपती धूप है, छाँव पिता का प्यार।
बाहर से पाहन लगें, भीतर सौम्य दुलार।।
सघनित शीतल छाँव में, बैठे हर संतान।
पिता हमारे थे वही,अद्भुत शुभ संसार।।
यद्यपि बड़े अभाव थे, हुआ नहीं आभास।
खड़े सदा वे साथ में,बन उन्नति का द्वार।।
सागरवत गहराइयाँ, प्रेरक सूर्य समान।
नीलांबर का रूप वे,थे अनंत विस्तार।।
आज पिता के पुण्य का,जीवन है अवदान।
दाता भी भगवान वे, दिया हमें है तार।।
पितुराज्ञा इच्छा बनी, कर्मठता का पाठ।
सिखलाते मेरे पिता, कर जीवन उद्धार।।
'शुभम्' न की अवहेलना,इतना तो है याद।
सिर मेरा किंचित दुखा,चिंतित वे बेजार।।
शुभमस्तु !
17.06.2024● 3.15आ०मा०
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