बुधवार, 19 जून 2024

माँ धरती आकाश पिता [ गीत ]

 269/2024

     

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


माँ धरती

आकाश पिता हैं

दो के मध्य बसे संतान।


धैर्य धारिणी

सौख्यकारिणी

जीवन  देने  वाली   मात।

नेहदायिनी

प्रेमवाहिनी

खिलता है जल में जलजात।।


आजीवन

लौटा न सकेंगे

मात-पिता के हम अहसान।


गीली शैया में

माँ सोई

शीत ठिठुरती काली रात।

सुख की सेज

सुला संतति को

करती लाड़ भरी माँ बात।।


जनक घाम में

सघन छाँव हैं

करें सुखों का अपना दान।


सौ जन्मों में

चुका न पाते

मात -पिता के ऋण का भार।

धर्म यही 

उनके चरणों में

सदा   मान   के  सौंपें  हार।।


माता-पिता 

सर्वस्व हमारे

वही हमारे हैं भगवान।


मात-पिता का

हृदय दुखाए

उसका   जाग   उठा दुर्भाग।

रौरव नरक

भोग आजीवन

बनता राख सुलगती आग।।


रोते पिता

कष्ट के आँसू

सुख के टूटें सभी वितान।


इच्छा ही आदेश

पिता की

संतति जो भी लेती मान।

सफल सदा

होता दुनिया में

बनता मानव एक महान।।


वही प्राण हैं

वही त्राण हैं

मानव - जीवन का अवदान।


शुभमस्तु !


15.06.2024●8.00पतनम  मार्तण्डस्य।

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