265/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जीवन इतना
सरल नहीं है
हालातों से लड़ना है।
कदम-कदम पर
जटिल समस्या
स्वयं जिसे सुलझाना है।
रखे हाथ पर
हाथ न बैठें
अश्रु नहीं बरसाना है।।
तरसें एक
बूँद पानी को
भूतल में सिर गड़ना है।
अपने ही पैरों
पर चलकर
मंजिल अपनी पाते हैं।
करते काम
नहीं तन- मन से
मनुज वही पछताते हैं।।
लक्ष्य प्राप्ति के
लिए सदा ही
हर जन-जन को अड़ना है।
नहीं कामचोरी
से चलता
काम किसी का जगती में।
चींटी भी
निज श्रम से पाती
भोजन अपना धरती में।।
शव बहते
प्रवाह में सारे
जिनको जल में सड़ना है।
शुभमस्तु !
11.06.2024●8.15आरोहणं मार्तण्डस्य।
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