288/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बैलों का
हमजोली देखो
निकल पड़ा बैलों के साथ।
उपजाता है
अन्न खेत में
जन-जन का करता कल्याण।
महिमा उसकी
कौन न जाने
कृषक करे जनता का त्राण।।
कभी बैलगाड़ी
ले जाता
झुका धरणि माता को माथ।
कर्षण करे
खेत का हल से
कभी धरा में बोता बीज।
कौन हृदय
वाला नर- नारी
जो न देख कर जाय पसीज।।
बढ़ते उसके
कदम न रुकते
और न रुकते पल भर हाथ।
कभी धूप में
कभी छाँव में
करता रहता श्रम अविराम।
स्वेद बहाता
दो रोटी को
निशिदिन करता रहता काम।।
'शुभम्' कृषक
भारत का वंदित
शल्य समन्वित उसका पाथ।
शुभमस्तु !
25.06.2024● 7.45आ०मा०
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