274/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पाप ताप
नाशिनी तरंगिणि
गङ्गा माँ को प्रणत प्रणाम।
आया पर्व
दशहरा गङ्गा
लहर- लहर लहराए कलकल।
गंगोत्री से
निसृत अमृत
बहता जाए भू पर छलछल।।
सुरसरि देवनदी
ध्रुवनन्दा
नदीश्वरी मंदाकिनि नाम।
नर -नारी
आबाल वृद्ध जन
नहा रहे हर-हर गंगे।
साड़ी धरे
नहातीं नारी
बालक कूद-कूद नंगे।।
भागीरथी
त्रिपथगा सुरधुनि
पल को लेती नहीं विराम।
धन्य -धन्य
हम भारतवासी
धन्य भगीरथ जो लाए।
धरती पर
उतार सुरपुर से
पयस्विनी ने स्वर गाए।।
'शुभम्' पापहर
रूपधारिणी
बना धरा पर गङ्गाधाम।
शुभमस्तु !
18.06.2024●4.30 आ०मा०
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