बुधवार, 12 जून 2024

जनता [कुंडलिया ]

 262/2024

                      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

कहते  जनता को सभी,यहाँ जनार्दन  ईश।

जनादेश   देती   वही, कहलाती जगदीश।।

कहलाती   जगदीश,  दृष्टियाँ उसकी पैनी ।

नेता  सब  उन्नीस, छाँटती छन- छन छैनी।।

'शुभम्' न समझें मेष,बंद कर दृग जो  रहते।

बदलें   जितने  वेष, इसे हम जनता कहते।।


                         -2-

मतमंगे  बन  माँगते,  जनता   से   वे वोट।

झुका शीश वे  चाहते,  देना  ही  बस चोट।।

देना  ही  बस  चोट,   सदा  झूठे आश्वासन।

भरे बहुत से खोट,दिखाते जन को ठनगन।।

'शुभम्' निकलता काम, नहाएँ हर- हर गंगे।

लक्ष्य   कमाना   दाम,सभी का जो मतमंगे।।


                         -3-

इतनी  भी भोली नहीं, जितनी समझें   लोग।

जनता अपने  देश  की, भरा स्वार्थ का    रोग।।

भरा स्वार्थ का रोग,मुफ़्त का सब मिल  जाए।

करना पड़े  न  काम,सुमन उर का खिल पाए।।

'शुभम्'  न  पाता जान,अतल  गहराई कितनी।

नेता    है  अनजान,   चतुर है  जनता इतनी।।


                         -4-

नेता    निकला    घूमने,   रैली  की ले टेक।

जनता से कहता  यही,मुझसे भला न  नेक।।

मुझसे    भला    न   नेक, दूसरा नेता  कोई।

मैं   ईश्वर   का  रूप,भाव भर आँख भिगोई।।

'शुभम्' रखें ये ध्यान,नहीं मैं क्या कुछ लेता।

रखता  सबका  मान,  सभी  हैं कहते नेता।।


                         -5-

जनता  को    कोई  नहीं, दे सकता है चाल।

जाता   जो  दरबार  में,  बदले उसका  हाल।।

बदले   उसका  हाल,  वही इतिहास बनाए।

डाल गले  में  माल,  उच्च आसन पर लाए।।

'शुभम्'  वही  नर  मूढ़, मूढ़ ही नेता बनता।

नेता  पर   आरूढ़,   सदा ही रहती जनता।।


शुभमस्तु !

07.06.2024●11.30आ०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...