255/2024
नेताजी करते नहीं, जन जनता से प्यार।
आता समय चुनाव का,बाँटें प्यार उधार।।
नेतागण चाहें नहीं, करना पूर्ण विकास,
कौन उन्हें पूछे भला ,खोल घरों के द्वार।
पाँच वर्ष के बाद में, आता है मतदान,
सत्ता पाने के लिए, टपके सबकी लार।
राशन बिजली तेल के, आश्वसन दें नित्य,
बना निकम्मा देश को,वांछित है गलहार।
जनता को सुविधा नहीं, भोगे कष्ट अनेक,
नेतागण परितृप्त हैं, छाया रहे खुमार।
चमचे गुर्गे मौज में, खाते मक्खन क्रीम,
चूसे जाते आम ही, डाल करों के भार।
'शुभम्' देश की भक्ति का,अंश नहीं लवलेश,
प्रजातंत्र में ही प्रजा, का नित बंटाढार।
शुभमस्तु!
03.06.2024●5.15आ०मा०
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