सोमवार, 24 जून 2024

बदल रही दुनिया [ गीतिका ]

 287/2024

        

शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


बदल रही दुनिया क्षण -क्षण में ।

मानव  झोंक  दिया   है रण  में।।


मात - पिता की   करें   न   सेवा,

लगा  मान  दाँवों  पर   पण   में।


मन  अपवित्र  बुद्धि   दूषित   है,

कठिनाई     अति   संप्रेषण   में।


बारूदों    के      ढेर   लगे    हैं,

आग  सुलगती  मन  के व्रण में।


मन  पर   धूल   लदी    है   ढेरों,

झाड़   रहा   है  रज  दर्पण   में।


वाणी  से   जन    नीम   करेला,

प्रकृति  नहीं मधु  रस वर्षण में।


'शुभम्' जिधर  देखो  व्याकुलता,

लपटें  उठी    हुईं   जनगण   में।।


शुभमस्तु !


24.06.2024● 12.45आ०मा०

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