257/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चार जून आ गई।
गाँव नगर छा गई।।
ऊँट किधर सो रहा।
करवटों में खो रहा।।
अजब गजब ढा गई।
चार जून आ गई।
जाने कब उठे यह।
बोझ पीठ पर दुसह।।
शांति सुख खा गई।
चार जून आ गई।।
कैसा ये खुमार है।
लगे गया हार है।।
मंजिलों को पा गई।
चार जून आ गई।।
कितने डग पार है?
जनमत दुलार है।।
आम जन लुभा गई।
चार जून आ गई।।
नींद नहीं रात को।
समझें कब बात को।।
खाज - सी खुजा गई।
चार जून आ गई।।
लगता नहीं घाम है।
जपें राम - राम है।।
अटकलें नई - नई ।।
चार जून आ गई।।
ऊँट जागने लगा।
करवटें लेने जगा।।
खुशी नई छा गई।
चार जून आ गई।।
'शुभम्' मोबाइल खोल।
बज रहे देख ढोल।।
बढ़ रही है दंगई।
चार जून आ गई।।
शुभमस्तु !
03.06.2024●3.00प०मा०
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