रविवार, 2 जून 2024

मेरा मौनव्रत [ दोहा ]

 252/2024

              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मौनव्रती  विख्यात मैं,  करता  व्रत प्रति  मास।

तीन शतक  बनते  सदा, मत समझें उपहास।।

नहीं   कैमरों   को सजा,  करता   मैं व्रत    मौन।

टीबी   या  अखबार  में,  जान सका है   कौन??


बारह   मासी   मौन  व्रत, का  है पावन   भाव।

घर   वाले  भी  जानते,  मुझे  मौन का    चाव।।

नहीं    हिमालय    चाहिए, या    कोई  एकांत।

दिनचर्या   मम   मौनव्रत,   मानें  मत अरिहंत ।।


नौ  से  प्रातः  पांच  तक, रहता  मैं नित  मौन।

दिन  में  घण्टे  चार  - छः, मौन रहूँ निज भौन।।

दिनचर्या    का  अंग  है,  मेरा  यह व्रत   मौन।। 

अब  ज्ञापित  करना  वृथा,मधुर या कि हो लौन।।


मुझे    न   कोई   होड़  है,करता  नहीं  प्रचार।

मौन   वाक   का  मौन  व्रत, कहने से  बेकार।।

वीणावादिनि   का   हुआ, मुझे  सूक्ष्म  आदेश।

पुत्र   मौनव्रत  व्यक्त   कर, धरे  बिना  नव वेश।।


तथाकथित की  बात  क्या,छींकें खाँसें  नित्य।

अखबारों   में   जा    छपे, बतलायें औचित्य।।

जैसे  लेते    साँस    नित, वैसे   ही व्रत   मौन।

शक्ति  बढ़ाता भक्ति की, चले श्वास का पौन।।


'शुभम्' शयन  में  मौन  रह,करता कवि  संधान।

बात  नहीं  करता  कभी,कविता हित  अनुपान।।


शुभमस्तु !


02.06.2024●2.00आ०मा०

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