बुधवार, 12 जून 2024

घुमक्कड़ विचार! [ व्यंग्य ]

 267/2024 



 ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 जब भी मैंने उसे देखा चलते -फिरते, घूमते-भ्रमते,इधर से उधर और उधर से कहीं और जिधर चल पड़े उस डगर ;पर ही देखा। वह कभी भी शांत और संतोष पूर्वक नहीं बैठा।जैसे विश्राम तो वह जानता ही नहीं।कितना भी सहलाओ ,वह मानता ही नहीं।बस चलना और चलना और चलते ही रहना। लगता है 'चरैवेति चरैवेति' का मंत्र इसी के लिए बना है। वह कितना घुमक्कड़ है, बतलाना कठिन है। विराम तो जैसे जानता ही नहीं। 

 यह मेरा, आपका, सबका विचार है।हर समय यात्रा करने को लाचार है। इसको रोक पाने का भी नहीं कोई उपचार है।प्रतिक्षण अहर्निश इसका संचार है। जागरण, स्वप्न और सुसुप्ति में भी वह नहीं निर्विचार है। कभी अकेला ही चल पड़ता है।बड़ी - बड़ी ऊंचाइयों की सैर करता है।मानसून के बादलों जैसा उमड़ता है,घुमड़ता है।कभी इधर तो कभी उधर को मुड़ता है। यह विचार ही है ,जो सदैव चढ़ता बढ़ता है।

 कभी - कभी यह अपना जोड़ा भी बना लेता है।अकेले न चलकर बेड़ा सजा लेता है।आपस में बहुत से विचार घुल - मिल जाते हैं।कभी झूमते हैं तो कभी मंजिल को पाते हैं।कैसे कहूं कि विचार बेचारा है।विचार के चलने से ही तो आदमी को मिलता किनारा है।यह आदमी भी विचारों की गंगा-धारा है।विचार अपनी सुदीर्घ यात्रा में न थका है ,न हारा है।ये विचार भी मेरे मन में बड़ा प्यारा है।

 यह भी कम अद्भुत नहीं कि यह विचार ही है ,जो उसे अन्य दोपायों या चौपायों से विलग करता है।वही उसका विकासक है, इसी के पतन से आदमी मरता है।चौपायों के पास खाने और विसर्जन के अतिरिक्त कोई विचार ही नहीं है।इसीलिए मनुष्य सर्वश्रेष्ठ दोपाया है,यह बात सत्य ही कही है।यह अलग बात है कि इस दोपाये मनुष्य के भी कुछ अपवाद हैं। जो देह से तो मानव हैं,किंतु विचार की दृष्टि से पशु निर्विवाद हैं। क्योंकि उनका काम भी केवल आहार और विसर्जन है। विचार का तो उसके लिए पूर्णतः त्यजन है, वर्जन है।

 यह विचार ही है, जो मनुष्य की कोटि का निर्धारक है।विचार ऊँचा भी होता है और नीचा भी।छोटा भी होता है और बड़ा भी।ओछा भी होता है,महान भी। बढ़ाता या घटाता है संबंधित की शान भी। बन जाता है ,मानव का विचार महान भी।यह विचार ही है जो काट लेता है अच्छे अच्छों के कान भी।विचार ही जीवन है, विचार ही उसकी मान त्राण भी। 

 विचार की यह यात्रा यों ही निरर्थक नहीं है।मानव की बुद्धिशीलता का मानक यही है।मानव मानव की श्रेणी का यह विभेदक है।विचार के वितान का जन - जन बंधक है।विचार से ही कवि कवि है, वैज्ञानिक वैज्ञानिक।विचार से ही नेता नेता है, डाकू डाकू। विचार ही सुमन है, विचार ही है चाकू।चलेगा नहीं तो मार्ग में बढ़ेगा कैसे! बढ़ेगा नहीं तो शिखर पर चढ़ेगा कैसे! यह तय है कि कोई विचार बेचारा नहीं है।जो भी यह सुनिश्चित करता है,पात्रातानुसार वह उसके लिए सही है।इतना अवश्य है कि हम अपने विचारों को परिमार्जित करते रहें।विचार की संजीवनी से जीते रहें,आगे बढ़ते रहें। 

 शुभमस्तु !

 12.06.2024●10.30आ०मा०

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