264/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नीचे बिछा दो बोरियाँ,
माँ गा रही है लोरियाँ।
तप पालना संतति महा,
सब जानती हैं गोरियाँ।
संतान का दायित्व है,
बोले न दारुण बोलियाँ।
संतान के हित ही जिएँ,
करतीं न जननी चोरियाँ।
खाली न होतीं एक पल,
जननी-जनक की झोलियाँ।
अनुकरण से ही सीखतीं,
माँ की लड़ैती पुत्रियाँ।
आओ 'शुभम्' नर हम बनें,
संतान की शुचि ओलियाँ।
शुभमस्तु !
10.06.2024● 4.15आ० मा०
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