503/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
दाता हैं वे ज्ञान के, शिक्षक जिनका नाम।
नित प्रति उठकर कीजिए, उनको नमन प्रणाम।।
उनको नमन प्रणाम, ज्योति से तुम्हें जगाए।
करते तम का नाश, उजाला भर- भर जाए।।
'शुभम्' प्रथम गुरु एक,जिसे कहता जग माता।
दूजे जनक महान, ज्ञान के शिक्षक दाता।।
-2-
अपने जो भी ग्रंथ हैं, उनको शिक्षक मान।
कभी नहीं वे रूठते ,सदा ज्ञान की खान।।
सदा ज्ञान की खान, सदा वे तत्पर रहते।
उनमें नहीं गुमान, नहीं कुछ उलटा कहते।।
'शुभम्' करें संकल्प, पूर्ण हों सारे सपने।
शिक्षक हैं साकार, ग्रंथ सब पढ़ना अपने।।
-3-
अपने इस संसार में,जिनसे मिलता ज्ञान।
शिक्षक हैं सारे यहाँ, करना उनका मान।।
करना उनका मान, चाँद सूरज या तारे।
लघु पिपीलिका एक,विटप खग जंतु हमारे।।
'शुभम्' पात्र की बात,पात्रता के शुभ सपने।
करते हैं वे पूर्ण, जगत के साधन अपने।।
-4-
पहले पहचानें सदा, कौन यहाँ सत पात्र।
शिक्षक या गुरु मान लें, एक वही हो मात्र।।
एक वही हो मात्र, पतन से सदा बचाए।
लक्ष्य प्राप्ति हो सिद्ध, ज्ञान का मान बढ़ाए।।
'शुभम्' शिष्य तू सीख,ज्ञान को ऐसे गह ले।
जैसे चुम्बक लौह , पकड़ता सबसे पहले।।
-5-
जितने इस संसार में, नर या नारि महान।
शिक्षक ही की देन हैं, उनके कौन समान।।
उनके कौन समान, गगन में सूरज जैसे।
तम का करता नाश,सभी शिक्षक हैं वैसे।।
'शुभम्' ज्ञान के दीप, सभी गुरु होते इतने।
होते वही महान, चमकते सूरज जितने।।
शुभमस्तु !
04.09.2025●10.00प०मा०
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