बुधवार, 3 सितंबर 2025

मैं भी कुत्ता तू भी कुत्ता [ नवगीत ]

 491/2025


   ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


मैं भी कुत्ता

तू भी कुत्ता

फिरता है तू घर-घर द्वार।


डनलप के गद्दे पर सोता

कभी नहीं मैं भूखा रोता

मेरा अपना मान है

दूध मलीदा   मैं   हूँ खाता

नित्य सैर को बाहर जाता

मेरी अपनी शान है

मैं भी कुत्ता

तू भी कुत्ता

नहीं झेलता मैं तकरार।


मालिक  मुझे  लगाए साबुन

और मालिकिन रगड़े मंजन

लगवाता खुशबू का तेल

शीतकाल में ओढ़ रजाई

सोता हूँ मैं   टाँग फसाई

करवाते   मादा   से  मेल

मैं भी कुत्ता 

तू भी कुत्ता

सबका ही मैं पाता प्यार।


तू  तो   नित   दुत्कारा  जाए

मिल जाए तो टिक्कड़ खाए

तेरा क्या ईमान है

रात-रात   भर  तुझे  भौंकना

चैन न तुझको जान  झोंकना

हरा  हमारा  लान है

तू भी कुत्ता

मैं भी कुत्ता

बड़ा कष्ट है तुझको यार।


शुभमस्तु !


03.09.2025●2.45प०मा०

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