497/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हम कुत्तों के बीच
बनाई तुमने ही दीवार।
पहले थे हम
सभी भेड़िए
वन में था साम्राज्य
रहते वन में
सभी एक हो
सदा रहे अविभाज्य
जब से साथ
मिला मानव का
हुई परस्पर रार।
कुछ गलियों में
भौंक रहे हैं
कुछ तुमने ही पाले
भेदभाव के
बीज हमारे
मन में तुमने डाले
कुछ घूमें
टुकड़ों की ख़ातिर
कुछ को मानव प्यार।
जंजीरों में
बँधा हुआ है
फिर भी बड़ा प्रसन्न
सोच -सोच
ये हाल कुकुर का
माथा टनके टन्न
पीते देख
दूध प्याले में
टपके अपनी लार।
जंजीरों को तोड़
इधर आ जाओ
प्यारे श्वान
एक साथ
मिल हम भोंकेंगे
मत मेरा लो मान
फिर से वहीं
मील पत्थर पर
बरसेगी जल धार।
शुभमस्तु !
04.09.2025● 9.45आ०मा०
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