504/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अपने को
कुत्ता होने का
दर्द मुझे भी भारी।
किन पापों का
दंड मिला है
किन कर्मों का
श्वान सिला है
कर भी क्या
सकता हूँ मेरी
बहुत बड़ी लाचारी।
आवारा बन
दर -दर फिरता
टुकड़ा मिले न
डंडा गिरता
भौंक - भौंक कर
काटूँ रातें
बड़ी बुरी बीमारी।
कुत्ता हूँ तो
इज्जत क्यों हो
पैदा व्यर्थ
हुआ हूँ मैं तो
कुत्ते का भी
जीवन क्या है
समझा गया लबारी।
शुभमस्तु !
05.09.2025● 6.15 आ०मा०
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