519 / 2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चलो चलें
पहचान बनाएँ।
वफ़ादार हम
कुत्ते होते
मानव से उम्मीद नहीं है
नींद श्वान की
हम हैं सोते
हम जो करते सभी सही है
मजबूरी इतनी है अपनी
रोटी भी उसकी ही खाएँ।
पड़े जरूरत
तब ही भौंकें
यों ही नहीं भौंकना अच्छा
होती है
बदनाम भौंक ये
बनना होगा हमको सच्चा
करें न ऐसा काम एक भी
बार - बार कूकुर पछताएं।
दुर्दिन ऐसे
कभी न देखे
कुत्ता कहकर लतियाते हैं
उनकी घरनी
लाड़ लड़ाती
हम पर इतना पतियाते हैं
लादा वादा
अदालत में क्यों
अपनी करनी पर उकताएँ।
शुभमस्तु !
06.09.2025●9.15 आ०मा०
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