बुधवार, 3 सितंबर 2025

तू हमसे क्या होड़ करे! [ नवगीत ]

 493/2025


     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


रंग -बिरंगे अपने बच्चे

तू क्या हमसे होड़ करे !


आजादी   का  लाभ  हमें है

तू कारा में बंद पड़ा

एकल जीवन भी क्या जीना

लगता है बीमार सड़ा

स्वामिभक्त मैं सेवक उसका

तू क्या  हमसे होड़ करे!


है गुलाम समझे तू मालिक

जंजीरों का बंधन क्यों

पड़ा-पड़ा खाता रहता है

हो कोई तू मुर्दा ज्यों

पाया है कुत्ता-दिमाग तू

तू क्या हमसे  होड़ करे!


जो आए   घर  उसे डराता

भौं-भौं थोथी करता है

डंडा पड़े पीठ मालिक का

रोने का ढँग भरता है

एक विसर्जन का ढँग अपना

तू क्या हमसे होड़ करे!


शुभमस्तु !

03.09.2025●3.30प०मा०

                   ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...