शनिवार, 6 सितंबर 2025

आदमी फिर भी पाले! [ नवगीत ]

 516/2025


       


 © शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


है विपरीत स्वभाव

आदमी फिर भी पाले!


इधर गली का

उधर गृही का

मेल न कोई

स्वार्थ साधने की

सारी यह

जुर्रत बोई

अपनी ही सीमा में

रह खुद को समझा ले।


देख उधर

सड़कों पर

कोई बेबस निर्बल

उसे पाल ले

देगा ही कुछ

तुझको संबल

मानव है मानवता के

कुछ गीत सुना ले।


प्रकृति भिन्नता

कब तक

तेरे साथ चलेगी

दुर्दिन में

तेरी क्या होगी

तुझे छलेगी

कर मानव से प्रेम

प्रेम के गाने गा ले।


शुभमस्तु !


06.09.2025●5.45 आ०मा०

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