गुरुवार, 4 सितंबर 2025

प्रवीण [ सोरठा ]

 495/2025


        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


डिगे  न   साहस  क्षीण,कैसा कोई कर्म हो।

होना   उसे  प्रवीण,कर्ता को वांछित  यही।।

भय   का  हो  संचार,जो प्रवीण होते  नहीं।

चढ़ता तेज बुखार,काम सफल हो या नहीं।।


कदम  न  बहकें लेश,मानव वही प्रवीण है।

लुंचित  करे  न केश,निर्भय चलता पंथ में।।

सैनिक  सबल प्रवीण,युद्धभूमि में  जीतता।

अरि से डरकर क्षीण,किंचित भी हटता नहीं।।


करें   समय  से काम, समयबद्ध रहते  सदा।

कमा   रहे   हैं नाम, वे  ही मनुज प्रवीण हैं।।

जीवन तब खुशहाल,कठिन परीक्षा काल है।

करता नहीं सवाल,हो प्रवीण दिन-रात जो।।


समयबद्ध कर काज,बालक वही प्रवीण हैं।

बँधे   शीश  पर ताज,वह तनाव से शून्य   है।।

रहे   कलह   से दूर,  गृहिणी वही प्रवीण है।

देती मान जरूर,सास -ससुर पति आदि को।।


समझ करे हर काम,अधिकारी अधिकार को।

कर्म  करे अविराम,कहते उसे प्रवीण  जन।।

होता सफल किसान,जो प्रवीण कृषि कार्य में।

कहता    देश  महान, उत्पादन  भरपूर     हो।।


जो   निर्धारित  आज, हम प्रवीण हों कर्म में।

जगत  कहे सरताज,मिले सफलता नित्य ही।।


शुभमस्तु !


03.09.2025●9.00प०मा०

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