सोमवार, 1 सितंबर 2025

दुस्साहस की प्रतिमा [ गीत ]

 488/2025

  

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


दुस्साहस की

प्रतिमा हो तुम

तुमको शत -शत नमन प्रणाम।


भरती हो

छलाँग पर्वत से

पर्वत पर हे महिमावान

देख तुम्हें

ये करतब करते

काँप उठें मानव के प्रान

संकट में क्यों

झोंक रही हो

चमक उठेगा ऊपर नाम।


कल्पनीय 

जो नहीं हमें वह

करने का साहस करना

तुमने आज

दिखा पाया है

फिक्र रहित जीना-मरना

ऊपर अंबर

गहन अतल भू

देख रहा जग दुर्लभ काम।


तुमसे 

गहन प्रेरणा लेते

बालक युवा पुरुष नारी

कठिन

परिस्थिति में भी

विचलित नहीं कभी होती भारी

बढ़ते रहें

कदम नित आगे

मंजिल मिले सुबह या शाम।


शुभमस्तु !


01.09.2025●9.45 प०मा०

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