496/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
वफ़ादार
सब मुझको कहते।
तरसूं एक- एक टुकड़े को
देखूँ आस भरे मुखड़े को
जब तुम भोजन खाओ
दया न मुझ पर तुमको आती
देख दशा आँखें भर जातीं
मेरे लिए बचाओ
सुनो वेदना इस कुत्ते की
बहुत कष्ट हम सहते!
रात- रात भर पहरा देता
बदले में कुछ और न लेता
भौंक - भौंक कर जागा
चोर उचक्का जो भी आता
गुर्राकर मैं उसे भगाता
किंतु न कुछ भी माँगा
बारह मास गली में जागे
सदा कष्ट में दहते।
कभी पूँछ से करें इशारा
समझो क्या उद्देश्य हमारा
टुकुर -टुकुर हम ताके
कुछ टुकड़े हमको मिल पाते
धन्य तुम्हारे हम हो जाते
कभी- कभी हों फ़ाके
कभी प्रलोभन में आकर
कभी नहीं हम बहके।
शुभमस्तु !
04.09.2025●9.00आ०मा०
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[9:49 am, 4/9/2025] DR BHAGWAT SWAROOP:
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