गुरुवार, 4 सितंबर 2025

वफ़ादार सब मुझको कहते [ नवगीत ]


496/2025


  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


वफ़ादार

सब मुझको कहते।


तरसूं एक- एक टुकड़े को

देखूँ  आस भरे मुखड़े को

जब तुम भोजन खाओ

दया न मुझ पर तुमको आती

देख  दशा  आँखें  भर  जातीं

मेरे लिए बचाओ

सुनो वेदना इस कुत्ते की

बहुत कष्ट हम सहते!


रात- रात   भर  पहरा देता

बदले में कुछ और न लेता

भौंक - भौंक कर जागा

चोर उचक्का जो भी आता

गुर्राकर   मैं   उसे  भगाता

किंतु न कुछ  भी माँगा

बारह मास गली में जागे

सदा कष्ट में  दहते।


कभी पूँछ से करें इशारा

समझो क्या उद्देश्य हमारा

टुकुर -टुकुर हम ताके

कुछ टुकड़े हमको मिल पाते

धन्य   तुम्हारे  हम  हो जाते

कभी- कभी हों फ़ाके

कभी प्रलोभन में आकर

कभी नहीं हम बहके।


शुभमस्तु !


04.09.2025●9.00आ०मा०

                 ●●●

[9:49 am, 4/9/2025] DR  BHAGWAT SWAROOP: 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...