511/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सामिष और निरामिष का
क्या अजब निराला मेल है!
एक गली में
एक घरों में
कुत्ते हुए आदमी हैं
सुधरा किन्तु न
कभी आदमी
होना यही लाजमी है
सामिष बँधा हुआ
दिखता है
किंतु उलट यह खेल है।
भूल गया
मानवता मानव
कुत्ता मानवता की ओर
कदम रोज ही
बढ़ा रहा है
मानव दानवता की ओर
खींच रहा है
श्वान मनुज को
चली उलट ये रेल है।
कुत्तों को
मखमल के गद्दे
बच्चे जिनके भूखे हैं
लाड़ मिले
भरपूर श्वान को
बच्चों के प्रति रूखे हैं
अपने आप
आदमी ने ये
बना रखी घर जेल है।
शुभमस्तु !
06.09.2025●3.30 आ०मा०
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