बुधवार, 3 सितंबर 2025

श्रीगणेश [ कुण्डलिया ]

 489/2025


                  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                           -1-

श्रीगणेश   कविता   करूँ, कुंडलिया  का छंद।

वंदहुँ   प्रथम   गणेश  को,  छाए छवि आनंद।।

छाए    छवि    आनंद,  शारदा  माता   आएँ।

सुमधुर    वीणा   राग, बजाकर  तान  सुनाएँ।।

'शुभम्' सुनें नव गान,कमलासन  विष्णु महेश।

कुंडलिया   का   छंद, काव्य  मधुरा  श्रीगणेश।।


                         -2-

गौरी    सुत    हेरंब    की,  महिमा अपरंपार।

शुभम   सुमुख  संकट  हरें,विघ्नेश्वर दें   तार।।

विघ्नेश्वर   दें   तार, महाबल शिवसुत   भारी।

लेते     शीघ्र    उबार,  पिता जिनके त्रिपुरारी।।

'शुभम्'  गणाधिप   धीर,पधारें घर की   पौरी।

द्वैमातुर      विघ्नेश,  प्रतीक्षा  करतीं     गौरी।।


                            -3-

करके   धरा-परिक्रमा, जनक जननि  के पास।

आए   पुत्र    गणेश जी,  मन   में   है  उल्लास।।

मन  में    है   उल्लास, प्रथम  हो उनकी   पूजा।

कपिल    बुद्धि   के  नाथ,नहीं  कोई  है  दूजा।।

'शुभम्' मिला आशीष,पिता-माँ का भर-भर के।

एकदंत    गजवक्र, मुदित जननी को     करके।।


                          -4-

आओ     हम    आराधना, करते  हैं सुविचार।

श्रीगणेश   भगवान    की,   महिमा अपरंपार।।

महिमा  अपरंपार,  विनायक  विकट  गदाधर।

मंगलमूर्ति     उदार,  सुमुख गजवक्र  समादर।।

'शुभम्' जगा अनुराग, प्रमुख चरणों  को पाओ।

करें   नमन  हम आज,सभी मिल पूजें आओ।।


                         -5-

दाता   हो    सदबुद्धि    के, भालचंद्र  भगवान।

मात -पिता  की  भक्ति  के,एक निदर्श   महान।।

एक    निदर्श   महान, प्रमुख विघ्नेश  विधाता।

एकाक्षर      हेरंब,   युगल   पद शीश   नवाता।।

'शुभम्'  उमा-शिव  पुत्र, नेह  की प्रतिमा  माता।

विघ्न  हरो  प्रभु  शीघ्र,चतुर्भुज सुख के    दाता।।


शुभमस्तु !


02.09.2025● 9.45 प०मा०

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