सोमवार, 1 सितंबर 2025

कुत्ते आदमी पालते हैं [ नवगीत ]

 485/2025


    


© शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कोठियों में 

आज कुत्ते

आदमी को पालते हैं।


टहलने निकला

सड़क पर

एक कुत्ता बाँध पट्टा

आदमी

पीछे घिसटता

कर रहा

मुँहजोर ठट्टा

देखकर

मुद्रा मनुज की

दर्शकों को सालते हैं।


रोटियों को

सूँघकर वे

छोड़ देते यों पड़ी ही

दूध पीते

ब्रेड के संग 

रोटियाँ लगती सड़ी ही

देखकर

फीमेल अपनी

तिरछी नजर से ताकते हैं।


द्वार पर 

जो अतिथि आए

भौंकते भारी भयंकर

रेकसोना 

से नहाते

गर्व से वे ओढ़ते फ़र

देख 

गलियों के वे कुक्कर

नाक भौं बिचकावते हैं।


जाती नहीं

आदत कभी भी

टाँग वे ऊपर उठाते

देख अवसर

मील पत्थर

मेह से झट वे भिगाते

पूँछ के

संकेत करके

कुछ गृही से चाहते हैं।


सामिष 

मिले भोज

कहना भी क्या है 

चूसें 

वे हड्डी

वे उस पर फ़िदा हैं

एक ही

प्लेट थाली में

भोजन  स्वादते हैं।


शुभमस्तु !


01.09.2025●1.15प०मा०

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