शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

कहने को हम कुत्ते हैं [नवगीत]

 510/2025


       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


क्यों न पूँछ हो टेढी अपनी

कहने को   हम  कुत्ते  हैं।


मानव निर्मित 

मुहावरे ये

हम आपत्ति जताते हैं

कभी न उसको

सीधी होना

सत्य बात बतलाते हैं

कहें कहावत कितनी सारी

कहने को हम  कुत्ते हैं।


घी भी हजम

नहीं हो हमको 

क्या तुम हज़म कराओगे!

बिल्ली के पीछे 

हम भागें

क्या तुम उसे बचाओगे !

हम भी गढ़ें कहावत तुम पर

कहने को हम कुत्ते हैं।


कुदरत की 

इच्छा है बोलो

वही विसर्जन की है रीति

तुम्हें दिया है

जो कर्ता ने

तुम भी कभी बदलते नीति ?

तुम मानव हो बने रहो वह

कहने को हम कुत्ते हैं।


शुभमस्तु !


05.09.2025●4.00 प० मा०

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