500/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पूँछ बिना
क्या पूँछ न होती ?
मानव के तो
पूँछ न कोई
फिर भी पाता
इज्ज़त सोई
पूँछ हमारी
भाषा ढोती।
पूँछ हिलाकर
कुछ कह पाते
मालिक हम पर
प्यार लुटाते
एक नया
संकेतक बोती।
पूँछ दबाना
बात न अच्छी
पूँछ ताननी
होती सच्ची
आँखों में
चमकें तब मोती।
शुभमस्तु !
04.09.2025● 11.00 आ०मा०
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