गुरुवार, 4 सितंबर 2025

पूँछ बिना क्या पूँछ न होती? [ नवगीत ]

 500/2025



  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पूँछ बिना 

क्या पूँछ न होती ?


मानव के तो

पूँछ न कोई

फिर भी पाता

इज्ज़त  सोई

पूँछ हमारी

भाषा ढोती।


पूँछ हिलाकर

कुछ कह पाते

मालिक हम पर

प्यार लुटाते

एक नया

संकेतक बोती।


पूँछ दबाना

बात न अच्छी

पूँछ ताननी

होती सच्ची

आँखों में

चमकें तब मोती।


शुभमस्तु !


04.09.2025● 11.00 आ०मा०

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