505/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कर्म- दंड का खेल
योनि कुत्ते की पाई।
अब क्या हो
परिणाम आ गया
तन- मन में
सर्वांश छा गया
पड़े भोगना
ही आजीवन
ऐसी करी कमाई।
करनी का
प्रतिकार न कोई
सोच -सोच
यों कुतिया रोई
ऐसा कोई
कर्म किया है
ऐसी अपनी खेती बोई।
भोग योनि
ये श्वान हमारी
जीना है
अपनी लाचारी
पछतावा
यों बार-बार है
किस्मत अपनी खोई।
शुभमस्तु !
05.09.2025●6.45आ०मा०
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