बुधवार, 3 सितंबर 2025

समय सदा अनुकूल हो [ दोहा ]

 490/2025


     

[अनुभूति,अनुश्रुति,अनुकूल,अनुदान,अनुदार]


   ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                 सब में एक

वरदा    वाणी  शारदा,  की अनुभूति   महान।

काव्य- सृजन में हो रही,मिला 'शुभम्' वरदान।।

ईश्वर    की अनुभूति है,  यह अपार   संसार।

जो   नर  प्रज्ञावान  हैं,  करते  विमल विचार।।


पृथक करे पय- नीर को, अनुश्रुति यह प्रख्यात।

विधिवाहन की  सत्य  है,नहीं अभी तक   ज्ञात।।

अनुश्रुति  की  कथनी सदा,रहे सत्य   से   दूर।

लोगों    की  यह  मान्यता, जन्नत  में   हैं    हूर।।


समय   सदा  अनुकूल  हो,नहीं सत्य यह तथ्य।

चढ़ना- गिरना    शून्य  में,नित्य भानु   का कृत्य।।

मात-पिता    के   संग  में, रहे सदा  अनुकूल।

संतति   का   शुभ  धर्म है,  कहे न ऊलजुलूल।।


यदि मिलता अनुदान तो,करे उचित उपयोग।

नहीं  उड़ाए   धन   वृथा, नहीं  विषैले   भोग।।

करती    है   सहयोग   ये, भारत की सरकार।

देती   है  अनुदान भी,  ऋण  भी बनें  उदार।।


नर    होते अनुदार जो,उन्हें न मिलता  मान।

दयावंत   हों जीव  पर, जग  में  बनें महान।।

कोरोना  के  काल   में,  नहीं   देश अनुदार।

बना सहायक विश्व का,भारत विविध प्रकार।।


                   एक में सब

राशि   मिली   अनुदान की,हुआ मनुज   अनुदार।

अनुश्रुति कब अनुकूल हो,यदि अनुभूति विचार।।


शुभमस्तु !


03.09.2025●5.00आ०मा०

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