461/2022
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✍️ शब्दकार ©
👂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
भाई हम दो कान हैं,सुनें खोल सब कान।
इधर-उधर चिपके हुए,हमें न मिलता मान।।
हमें न मिलता मान,काम बस सुनना-सुनना
गाली ताली भली, बुरी बातों से बिंधना।।
'शुभम्' हमें है शाप,भले हों लोग - लुगाई।
देखा क्या पल एक, परस्पर हम दो भाई??
-2-
भाई हम हैं कान दो,डाला हम पर भार।
बोझ बढ़ा खूँटी बने,करते पर -उपकार।।
करते पर-उपकार, डंडियाँ चश्मे वाली।
आँखों ने क्या खूब,अदावत आज निकाली
'शुभम्' लाद दीं कान,युगल जोड़ी पछताई।
विधि का यही विधान,वेदना झेलो भाई।।
-3-
सबने आँखों होठ का,खूब किया शृंगार।
बाली झुमकों का पड़ा, हम कानों पर भार।।
हम कानों पर भार, नाम मुखड़े का होता।
आँसू से भी हीन, युगल चुपचुप ही रोता।।
'शुभम्' कहें निज पीर,आँख से बहते झरने।
करता है मुख हाय, कामना की शुभ सबने।।
-4-
घोड़ा लद्दू जानकर, हमें सताएँ खूब।
मास्टर जी भी ऐंठते, ज्यों पैरों तल दूब।।
ज्यों पैरों तल दूब,लटकतीं झुमके बाली।
छिदते हम दो कान,समझकर चोर मवाली।।
मुख की गाएँ कीर्ति,सदा हमको ही मोड़ा।
'शुभम्' न कोई माँग, नहीं हम लद्दू घोड़ा।।
-5-
माना बस गूँगा गया,नहीं बोलते कान।
सुनते सब अच्छी बुरी,गाली, ताली, गान।।
गाली, ताली, गान, रहें आगे जो बकते।
देखो दोनों नेत्र, इधर से उधर सिहरते।।
'शुभम्' वक्र आकार,रूप भी एँचकताना।
मृत्युभोज की शेष, पूड़ियाँ हमको माना।।
-6-
माना बस एक्सेसरी, समझा तुच्छ उपांग।
जो न परस्पर देखते, चिपकाया है सांग।।
चिपकाया है सांग,ठूँस लेता है पुड़िया।
मिस्त्री गुटका कान,घुसाकर ढँग से बढ़िया।।
पेंसिल का भी ठूँठ, खोंसता दर्जी जाना।
टाँग जनेऊ सूत्र, पंडितों ने क्या माना!!
-7-
सबका ही शृंगार कर,किए उपेक्षित कान।
आँखों में काजल सजा, अधरों पर मुस्कान
अधरों पर मुस्कान, लगाई नकली लाली।
मुखड़ा चुपड़े क्रीम,सुवासित त्वचा निराली
'शुभम्' गुलाबी गाल,रूज से जाना सदका।
सुनते हैं सब कान,कान से ही हित सबका।।
🪴शुभमस्तु !
02.10.2022◆3.00पतनम मार्तण्डस्य।
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