500/2022
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●समांत : अण ।
●पदांत : में ।
●मात्राभार : 16.
●मात्रा पतन: शून्य।
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✍️शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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प्रभु का वास सदा कण - कण में।
रहते हैं जड़ - चेतन तृण में।।
हर कर्ता के दृष्टा हैं प्रभु।
सभी जानते हैं वे क्षण में।।
अंतर में झाँको हे प्राणी !
सब कुछ दिखता उर - दर्पण में।।
लेने में आनंद नहीं है।
मिलता है सब कुछ अर्पण में।।
पूछें तो जाकर पर्वत से।
कितनी तृप्ति सलिल - प्रसवण में।।
सेवा , भक्ति - भाव पैदा कर।
नीति - रीति आए जनगण में।।
'शुभम्' दिखा मत पीठ शत्रु को।
सदा विजय हो तेरी रण में।।
🪴शुभमस्तु !
28.11.2022◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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