शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

कान खोल सुन लें सभी 🦻🏻 [ दोहा ]

 466/2022


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✍️ शब्दकार ©

👂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जुड़वाँ   भ्राता कान हम, दाँए - बाँए  भाग।

सिर के  दोनों  ओर  दो, सुनते जीवन-राग।।

कान खोल सुन लें सभी,हम भी तन के अंग।

खूँटी  समझा   है  हमें, करते हैं  जन  तंग।।


नहीं   बोलते  कान हम, सबकी सुनते  बात।

गाली  -  ताली आपकी,रोना गाना    लात।।

कानों को मिलता नहीं, उचित कहीं सम्मान।

नाक नेत्र मुखड़ा सभी,दिखलाते निज शान।


लोंगें,   बाली    झूमते,  झुमके दोनों   ओर।

ख्याति मिली मुख को बड़ी,दुखें कान के पोर

चश्मे  की  दो  डंडियाँ,दीं कानों   पर  तान।

आँखों ने बल्ली  लगा,ऊँची कर  ली  शान।।


बचपन में ऐंठा हमें,किया खींच कर लाल।

मास्टर जी ने कान का,किया बुरा ही हाल।।

मिस्त्री की पुड़िया घुसी,गुटका  चाभे खूब।

हम  कानों   के  छेद में,गई गर्त  में   डूब।।


टेलर  खोंसे  पैन  या,पेंसिल कानों  बीच।

सुनना ही तो कान का,ये न काम था नीच।।

डाल   जनेऊ कान पर,पंडित बने   महान।

शंक निवारण के लिए,लिया गर्व से   तान।।


कान सुनें सबकी कही, करें न हम  पर गौर।

भली-बुरी  जो भी कहें,बुरा समय  का  दौर।।


🪴शुभमस्तु !


04.11.2022◆2.15 

पतनम मार्तण्डस्य।

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