468/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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सुनना भी आसान नहीं है,
कानों से जा पूछे।
कान देव भगवान हमारे,
भला- बुरा सब सुनते।
शब्द एक भी नहीं बोलते,
भीतर -भीतर गुनते।।
ज्यों मंदिर की प्रतिमा।
प्रभु का एक करिश्मा।।
कान देव भी लगें बोलने,
तनें न तेरी मूँछे।
देव - देवियाँ बातें करते,
एक न मंदिर जाता।
करते खूब शिकायत अपनी,
जा कोई गरियाता।।
भला देव हैं बहरे।
गूँगे बन वे ठहरे।।
गाली , थाली, ताली सुनते,
कान हमारे कूचे।
सबकी सुनता बिना कान के,
देखे नयन बिना ही।
धन्यवाद है मेरे प्रभु को,
हर पल चलता राही।।
मानव क्रोध दिखाता।
इठलाता इतराता।।
उसे न कोई अंतर पड़ता,
समझे प्रभु को छूछे।
आँख कान प्रभु की समता का,
कोई तोड़ नहीं है।
तड़ - बड़ करते हैं नर - नारी,
क्षण भर मोड़ कहीं है??
व्यक्त नहीं कुछ करते।
मंजिल सभी विचरते।।
'शुभम्'उपद्रव की जड़ रसना,
नयन,कान,प्रभु सूछे।
🪴 शुभमस्तु !
05.11.2022◆11.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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