सोमवार, 7 नवंबर 2022

कानों से जा पूछे🏵️ [ गीत ]

 468/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सुनना  भी  आसान  नहीं  है,

कानों  से  जा  पूछे।


कान  देव    भगवान    हमारे,

भला- बुरा सब सुनते।

शब्द   एक भी   नहीं   बोलते,

भीतर -भीतर गुनते।।

ज्यों मंदिर की प्रतिमा।

प्रभु का एक करिश्मा।।

कान   देव   भी   लगें  बोलने,

तनें न तेरी मूँछे।


देव   -  देवियाँ   बातें    करते,

एक न  मंदिर  जाता।

करते खूब  शिकायत  अपनी,

जा  कोई  गरियाता।।

भला देव  हैं  बहरे।

गूँगे  बन वे   ठहरे।।

गाली ,  थाली,   ताली  सुनते,

कान  हमारे  कूचे।


सबकी सुनता  बिना कान के,

देखे नयन  बिना ही।

धन्यवाद   है   मेरे   प्रभु   को,

हर पल चलता राही।।

मानव  क्रोध दिखाता।

इठलाता     इतराता।।

उसे न   कोई   अंतर   पड़ता,

समझे प्रभु को छूछे।


आँख कान प्रभु की समता का,

कोई   तोड़   नहीं   है।

तड़ - बड़  करते हैं नर - नारी,

क्षण भर मोड़ कहीं है??

व्यक्त नहीं कुछ करते।

मंजिल सभी विचरते।।

'शुभम्'उपद्रव की जड़ रसना,

नयन,कान,प्रभु सूछे।


🪴 शुभमस्तु !


05.11.2022◆11.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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