472/2022
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✍️ शब्दकार©
🏃🏻♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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विचरण करते
आजीवन
ढोते तन का भार,
युगल चरण का
मानव को
सुंदर उपहार।
तत्पर सदा
कहीं भी जाने को,
समतल पर्वत
निधि -गहराई अथवा
धरती पथराई,
चरणों की महिमा
नहीं कहीं
कवियों ने गाई,
उचित नहीं आचरण
और उनकी निठुराई।
जब तक
चलते चरण,
करती जीवन को
प्रकृति धारण,
अन्यथा होने
लगता शनैः शनैः
निस्सारण,
जीवन से निस्तारण,
क्या है कारण?
क्यों करें उपेक्षा
निज चरणों की,
उचित समीक्षा
देह के अंग- प्रत्यंग,
जीवन की उमंग,
हो जदपि सांग
अथवा अनंग,
भरते हैं रंग
ये चरण युगल।
जाते जन
प्रातः भ्रमण,
कुछ चलें चरण,
करने जीवनी शक्ति का
ओजस वरण,
चरण महिमा का गायन,
'शुभम्' वंदनीय आचरण।
🪴 शुभमस्तु!
10.11.2022◆7.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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