504/2022
[ललाम,लावण्य,लौकिक, लतिका,ललक]
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
🌱 सब में एक 🌱
अंगों के उद्यान में, विकसे सुमन ललाम।
कंचन वर्णी कामिनी,क्या दें उनको नाम।।
आनन ओप उषांगिनी,तन कलधौत ललाम
रमणी के रँग में रँगा, दृग में दाहक काम।।
रची विधाता ने धरा,धरा मध्य लावण्य।
नारी की कृति मृत्तिका,करती नर को धन्य।।
देख रूप- लावण्य को,देव हुए आकृष्ट।
ऋषियों के आसन हिले, नारी से तप भ्रष्ट।।
लौकिक सुख की चाह में,भूला मानव पंत।
भक्ति न प्रभु की चाहता, आ जाता है अंत।।
नारी,संतति,धाम,धन,लौकिक सुख-आधार
मात्र भक्ति-पथ ईश का,सर्वोत्तम उपचार।।
लतिका दोनों बाँह की,निज प्रीतम के डाल।
सुघर नवोढ़ा चूमती, प्रियता से भर गाल।।
नव लतिका के अंक में,बना चिरैया नीड़।
दाना - पानी ला रही, निकट झूमता चीड़।।
गए सजन आए नहीं,बीत गई बरसात।
ललक लगी संयोग की, देनी प्रिय सौगात।।
ललक बिना आनंद का,क्यों होता विस्तार।
प्रेम-मिलन संयोग में, रहना सदा उदार।।
🌱 एक में सब 🌱
लौकिक ललक ललाम हो,
दिखता तब लावण्य।
लतिका के लघु कुंज में,
लगता स्वर्ग अनन्य।।
🪴 शुभमस्तु!
29.11.2022◆11.30
पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें