मंगलवार, 22 नवंबर 2022

साहस का प्रतिमान ⛰️ [ दोहा ]

 489/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

⛰️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सदा असंभव शब्द से,जिनका खाली कोष।

साहस  से  वे  जूझते, पाते   उर  में   तोष।।

राहों  में  उसके  पड़ी , दीर्घ विकट  चट्टान।

निज  साहस से ठेलता,बनता वीर   महान।।


बैठ  गया जो हार कर,उसकी कैसी   जीत।

साहस से  पर्वत चढ़ा, गुंजित जय के गीत।।

गिर-गिर चढ़े पिपीलिका,हिमगिरि के भी शृंग

लें सब उससे सीख हम,देख- देख दृग दंग।।


साहस से वश में किए,सिंह आदि बहु वन्य।

विजय-ध्वजा लहरा रहा, मानव साहस धन्य

बहा स्वेद  निज देह का,मानव वही   महान।

परजीवी  असहाय-सा,खोता अपना  मान।।


मानव - साहस  गूँज से, दिग्दिगंत   ब्रह्मांड।

पहुँचा सागर  की  तली,किए शृंग के खंड।।

गूँज  उठी   है  व्योम में,साहस की  गुंजार।

शुक्र सोम  पर जा चढ़ा,मानव ध्येय प्रसार।।


साहस  की  पतवार  से,होती सरिता पार।

दुर्गम  पर्वत शृंग पर,मानव का अधिकार।।

साहस से  ही  सिंह है,दुर्बल हीन   शृगाल।

श्वानों  से साहस बिना, नुचवाता  है खाल।।


साहस का प्रतिमान बन,मानव बने महान।

चढ़ दुश्मन के शीश पर,गाए झंडा - गान।।


🪴शुभमस्तु !


22.11.2022◆6.45

आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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