460/2022
[इच्छा,नवमी,पूजा,अक्षत,उपवास]
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✍️ शब्दकार©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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☘️ सब में एक ☘️
पर्वत-सी इच्छा बड़ी, बढ़ती रहे अनंत।
कर्म नहीं अनुकूल तो, होता उसका अंत।।
अपने कद-अनुरूप ही,इच्छा पालें मीत।
स्वप्न असंभव देखता, कैसे होगी जीत!!
अक्षय नवमी पावनी, करें सुजन उपवास।
पूज रोचनी वृक्ष को,करें निरोगी आस।।
अक्षय नवमी को किया,क्रूर कंस का अंत।
मथुरा में श्रीकृष्ण ने,रुक्मणि सत्या कंत।।
जो संतति पूजा करे,जनक जननि की नित्य
वही भक्त भगवान का,धर्म- कर्म औचित्य।।
पूजा,जप,तप है वृथा,यदि न दिया सम्मान।
गुरु या जननी जनक को,हने वचन कटु बान
कर्म सदा अक्षत रहें,फल के रूप हजार।
वही योनि आधार है,बदले तन आकार।।
अक्षर अक्षत ब्रह्म है,बोलें वाणी नेक।
उर को घात न दीजिए,रहें सदा सविवेक।।
सेवारत जो सुत रहे,जनक- जननि के पास।
वही तपस्या धर्म है, सर्वोत्तम उपवास।।
वसन रँगे होता नहीं, धर्म, भक्ति, उपवास।
आडंबर है मूढ़ता, चले देश- हित श्वास।।
☘️ एक में सब ☘️
इच्छा नवमी को करें,
अकरा तरु के पास।
पूजा अक्षत कर लिए,
पावन मन उपवास।।
🪴शुभमस्तु !
02.11.2022◆6.00 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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