464/2022
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✍️ शब्दकार ©
🦻🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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हम हैं
दो जुड़वाँ भाई कान,
हमें नहीं मिला
कभी भी उचित सम्मान,
किसी की तेरहवीं की
बची हुई दो
सूखी पूड़ियों की तरह,
चिपका दिया है
कपोलों पर
एक इधर
दूसरा उधर।
हमने कभी भी
एक दूसरे को नहीं देखा,
कहीं नहीं बनी
हमारे मिलन की
भाग्य रेखा,
हमें बस समझ रखा है
टाँगने की खूँटी,
कभी चश्मे की डंडियाँ,
आँखों की क्या अदावत थी
जो अपना
उल्लू सीधा करने को
हमारे ऊपर
बोझा डाल दिया,
कभी मिस्त्री की
घिसी हुई
पेंसिल की ठूँठी,
किसी ने गुटके की
बची हुई पुड़िया,
खोंस रखी है
ढंग से बढ़िया।
हमारी कभी
प्रशंसा नहीं होती,
होठों को लिपस्टिक,
आँखों को काजल,
गालों पर रूज,
मुखड़े पर क्रीम,
समझ में नहीं आई
हमारे कर्ता की थीम,
लटका दिए
हमें छेदकर
झुमके और बालियाँ,
नाक में नथुनियाँ,
ललाट पर बिंदियाँ,
माँग में सिंदूर
चश्मे बद्ददूर!
बजती हैं सदा
चेहरे की
प्रशंसा में तालियाँ,
हमें तो पड़ती हैं
सदा ही
गालियाँ,
कमजोर हुआ
बालक तो
मास्टर जी हमें ही
मरोड़ देते हैं,
मजबूर होकर
हम सब कुछ
सहते हैं।
गूँगे जो हैं,
परन्तु बहरे तो नहीं।
बोल नहीं सकते
तो क्या !
सुन तो सकते हैं!
गाली या ताली
भली या बुरी
सब हम ही
सुनते हैं।
हमने कभी कुछ
माँगा हो तो बताएँ,
और तो और
पंडित जी
को भी बड़ी दूर की सूझी,
हमारे ही ऊपर
लटका कर जनेऊ
अंटा मार दिया
किसी- किसी ने तो
चाबियों का गुच्छा भी
बाँध लिया!
तीन धागों का बोझ
औऱ ऊपर लाद दिया,
वैसे क्या हम
किसी लद्दू घोड़े से
कम थे ?
जिनमें लोंगें कुंडलों से ही
हम दोनों ही
बेदम थे।
काटते - काटते बाल
वह हरजाई
हमें ही काट देता है,
च्च !च्च!!करते हुए
नाई भी
हमें लात देता है,
डिटॉल चिपका के
पुचकार देता है,
पर हम जुड़वाँ
कान भ्राताओं का जोड़ा
सब सहन कर लेता है।
क्या करें किसी गाड़ी
की अतिरिक्त एक्सेसरीज
की तरह कपोलों पर
चिपके रहना है,
दर्द और बोझ
सभी कुछ सहना है,
हम कान हैं 'शुभम्',
सब कान खोलकर
हमारी भी सुन लें।
🪴 शुभमस्तु !
03.11.2022◆3.15
पतनम मार्तण्डस्य।
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