गुरुवार, 17 नवंबर 2022

जागो!सोए हो कहाँ?🏕️ [ कुण्डलिया]

 477/2022


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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

मूसे  निशिदिन  पेड़  की,जड़ में लगे अनेक।

खोद खोखला कर रहे, शुभद नहीं  है एक।।

शुभद नहीं  है  एक, पेड़ की  सूखें    डाली।

सोया कहाँ  किसान, कहाँ है तरु का माली।।

'शुभम्' न  भावी  नेक,निरंतर रस  को  चूसे।

पीले  पड़ते  पात, लगे  तरु- जड़  में  मूसे।।


                         -2-

जागो  सोए  हो  कहाँ,  करना है  उपचार।

चाटे  दीमक खेत  को,डालें जहर  फुहार।।

डालें  जहर   फुहार, मूल से शीघ्र  मिटाना।

तभी बचे धन धान, कीट नाशक डलवाना।।

'शुभम्'  नहीं  उपहास,शत्रु के पीछे  भागो।

मुड़ें  न  पीछे  देख,  देश  के वासी  जागो।।


                         -3-

बढ़ते  ही  घुन जा रहे,करना नाश   समूल।

हितकारी समझें नहीं,तनिक न  देना तूल।।

तनिक न  देना तूल, बनाते तरु की   माटी।

भीतर -भीतर काट,सकल रसमयता चाटी।।

'शुभम्'न अवसर छोड़,निरंतर ऊपर चढ़ते।

करते  जीवन -नाश,जा रहे घुन  ये  बढ़ते।।


                         -4-

जिनके  हैं  विपरीत  ही, छद्म रूप आकार।

वे  मानव  की देह में,इस धरती   का  भार।।

इस  धरती  का  भार,भार से मरती   धरती।

सहती कष्ट अपार,आह क्या पल को भरती।

'शुभम्'  उड़ाना  धीर, हवा में जैसे   तिनके।

धोखे का जंजाल,काज सब उलटे  जिनके।।


                         -5-

अपनी जननी का कभी, नहीं लजाना दुग्ध।

कर उसकी अवमानना,पर जननी पर लुब्ध।

पर-जननी   पर  लुब्ध, रीति बेढंगी    तेरी।

गाता   उसके   गीत , कहे  तू माता    मेरी।।

'शुभम्' मूढ़ता ओढ़,कूढ़ मगजी यह जितनी।

जीवन से अघ छोड़,जान जननी ये अपनी।।


🪴शुभमस्तु !


16.11.2022◆10.00पतन्म मार्तण्डस्य।

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