476/2022
[परिणय,परिचय,परिमल,पुहुकर,परिरंभ]
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✍️शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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☘️ सब में एक ☘️
पावन परिणय-सूत्र में,बँधे सकल नर-नारि।
ज्यों गुलाब सद गंध में,मिले ओसकण वारि।
ज्योति जहाँ परिणय वही,पति पत्नी दो दीप
युग्मित दो कण सिंधु में,मुक्ता देती सीप।।
पत्नी प्रियतम के लिए,जानी नहीं अदृष्ट।
विरल सूत्र परिचय नहीं,तदपि हुई आकृष्ट।।
आवश्यक परिचय नहीं,दंपति - बंधन हेतु।
धन-ऋण शुभ संयोग से,बनते संतति सेतु।।
परिमल प्रीति पराग का,पति-पत्नी के बीच।
एकमेक तन-मन करे,लाता खींच नगीच।।
उर से उर -संयोग का,परिमल पावन प्यार।
नए जीव की सृष्टि का,बने 'शुभम्' उपहार।।
पुहुकर प्रणय प्रवास का,दे सुरसरि आनंद।
तन मन के अभिषेक से,विकसे नव अरविंद।
पति पुहुकर की प्रीति में,प्रिया लीन दिन रैन
कल पल को मिलती नहीं,सदा सताए मैन।।
स्वाद प्रिया- परिरंभ का, वाणी शब्दातीत।
डाल-डाल अलि जा भ्रमे, क्या जानेगा प्रीत।
प्रिय परिरंभ प्रगाढ़ता, रही हृदय को साल।
प्रथम सघन अनुभूति से,रग रग भरा गुलाल।
☘️ एक में सब ☘️
परिचय से परिणय हुआ,
'शुभम्' सघन परिरंभ।
उर - पुहुकर में स्नात हो,
परिमल नासा दंभ।।
🪴शुभमस्तु !
16.11.2022◆4.00 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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