सोमवार, 28 नवंबर 2022

लेने में आनंद नहीं है☘️ [ गीतिका ]

 501/2022


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✍️शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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प्रभु    का   वास      सदा कण - कण  में।

रहते       हैं        जड़  - चेतन  तृण   में।।


हर       कर्ता       के      दृष्टा    हैं     प्रभु।

सभी      जानते      हैं      वे    क्षण    में।।


अंतर        में          झाँको     हे      प्राणी !

सब     कुछ     दिखता     उर - दर्पण   में।।


लेने          में        आनंद       नहीं       है।

मिलता     है      सब      कुछ  अर्पण    में।।


पूछें             तो       जाकर     पर्वत    से।

कितनी       तृप्ति     सलिल - प्रसवण में।।


सेवा   ,        भक्ति  -   भाव   पैदा     कर।

नीति     -     रीति       आए   जनगण   में।।


'शुभम्'        दिखा    मत पीठ   शत्रु   को।

सदा       विजय     हो    तेरी  रण      में।।


🪴शुभमस्तु !


28.11.2022◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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