सोमवार, 21 नवंबर 2022

भूल न संतति -धर्म को 🏕️ [ दोहा- गीतिका ]

 485/2022

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

समझे संतति कामना,को पितु का आदेश।

अनुपालन  में रत रहे, निष्कलंक  राकेश।।


एक   कान  से  बात   सुन,गई दूसरी    पार,

 पितृ आज्ञा वह शाप है,क्षम्य नहीं लवलेश।


भूला संतति -धर्म को,करता नित अपमान,

नर तन में  वह ढोर है,भले साधु  का  वेश।


रँगा न  मन  को रंग में,तन पर धर   कौशेय,

जनता को ठगता फिरे, बढ़ा सुलम्बित केश।


मात पिता की भक्ति का,पाता शुभ निष्कर्ष,

वही  तीर्थ, जगदीश हैं,शंकर, राम,   ब्रजेश।


लेने  को  प्रतिशोध  जो, आती  अरि  संतान,

परजीवी बनकर रहे,दे तन- मन  को  क्लेश।


'शुभम्' न दे परमात्मा, लेती जो प्रतिशोध,

साधारण   मानव  भले,बनना नहीं   सुरेश।।


🪴शुभमस्तु!


20.11.2022◆8.30 पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...