475/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कण - कण में प्रभु की कविताई।
छंद, शब्द , लय में बँध छाई।।
कर्म किया करता जन जैसा,
वैसी उसको मिले कमाई।
पंच तत्त्व से जगत बनाया,
समझ मूढ़ प्रभु की प्रभुताई।
सूरज, सोम, सितारे, सोहें,
सरिता ने शुभ महिमा गाई।
अंबर के मेघों से बरसे,
अमृत - सा जल करे सिंचाई।
आने - जाने का क्रम अविरल,
कहीं आगमन कहीं विदाई।
'शुभम्' सूत्र जीवन जीने का,
करना सबकी सदा भलाई।
🪴शुभमस्तु !
14.11.2022◆6.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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