488/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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शुभंकरी मनु श्रद्धा प्यारी।
पावनता में दुर्लभ नारी।।
दो से नयन चार जब होते।
नेह - नदी में लगते गोते।।
नहीं आज सतयुग उतराया।
कलयुग ने निज रंग दिखाया।
पंक-वासना में जा लिथड़ी।
श्रद्धा-तन की चिथड़ी टुकड़ी।
आफ़ताब ऊबा तब डूबा।
किया कलंकित दिल्ली सूबा ।
हुई वासना उर से भारी।
खटकी अंकशायिनी नारी।
प्रेम वासनामय है अंधा।
भूला निज वादे का कंधा।।
चूम देह-दृग प्यार जिया था।
उसी देह पर वार किया था।।
नशा वासना का जब ठंडा।
क्रोध द्रोह का थामा डंडा।।
हने प्राण की बोटी - बोटी।
पैंतीसों अति छोटी - छोटी।।
अंधकार 'सहजीवन' तेरा।
स्थिर होता नहीं बसेरा।।
कीचड़ तल वासना सजाए।
दो पल पावन प्यार न भाए।।
पशुओं से भी नीचे मानव।
नर देही में बनता दानव।।
मात्र वासना का नर कीड़ा।
नहीं नयन उर में लघु व्रीड़ा।।
'शुभम्' बुद्धि विकृत जो करता।
दहक वासनानल में मरता।।
साथ नहीं विवेक का छोड़ें।
दुष्य पंक से नाता जोड़ें।।
*दुष्य=बुराई नाशक।
🪴शुभमस्तु!
21.11.2022◆ 12.30 पतनम मार्तण्डस्य।
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