गुरुवार, 24 नवंबर 2022

उपहार [ सोरठा ]

 495/2022

         

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✍️ शब्दकार ©

🦋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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जीवन है उपहार, जाने नर यदि  मोल   तो।

शुभ ही शुभ हर बार,त्याग और उपकार से।


बन जाता उपहार,संयम मानव   के  लिए।

बंद  प्रगति  के  द्वार, ढोर  नहीं  बनना हमें।।


खिलता उर का  फूल, देने से उपहार को।

बोना  नहीं  बबूल, त्याग भरा आनंद  है।।


बनता जीवन धन्य,परिणय के उपहार से।

तुझे  बनाए  वन्य,वरना जीवन  ढोर - सा।।


मिला हमें  उपहार,दीवाली पर  ज्योति का।

कर निर्धन से प्यार, देकर के सुख  लीजिए।।


करके  झूठा  प्यार,सता न नारी  को कभी।

पा सुख का उपहार,स्वर्ग सदृश निज गेह में।


पंचतत्त्व अनमोल,बिना शुल्क मिलते सभी।

गगन  मध्य भूगोल,जीवन के उपहार  ये।।


🪴शुभमस्तु!


24.11.2022◆2.00

पतनम मार्तण्डस्य।

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