मंगलवार, 22 नवंबर 2022

हमने दो खरहे पाले 🐇 [ बालगीत ]

 490/2022

 

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🐇 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

हमने   घर   दो  खरहे   पाले।

दोनों   हैं   वे   गोरे  -  काले।।


नर   खरहा   फुर्तीला   भारी।

खाता  हरी  -  हरी तरकारी।।

धमा  -  चौकड़ी   करने वाले।

हमने  घर  दो   खरहे  पाले।।


मादा  रहती   घर   में   ऊपर।

नर आता झट   नीचे   भूपर।।

करते  करतब   बड़े   निराले।

हमने घर दो   खरहे    पाले।।


जन्माए  मादा     ने   शावक।

गोरे - काले   दोनों    मेलक।।

कोई  उनको  हाथ   उठा  ले।

हमने घर दो    खरहे   पाले।।


एक  दिवस टट्टर  से  गिरकर।

घायल हुआ नाक में   भूपर।।

हे   ईश्वर !  तू   उसे   बचा ले।

हमने   घर   दो  खरहे पाले।।


दूध  रुई  में   भिगो  पिलाया।

लगा वॉलिनी   हाथ उठाया।।

मादा   देती    घास   निवाले।

हमने  घर   दो   खरहे पाले।।


'शुभम्' ईश सुनते हैं विनती।

जोड़ी खरहा की भी जपती।।

चंगे   खेल    उठे    मतवाले।

हमने  घर दो   खरहे  पाले।।


🪴 शुभमस्तु!


22.11.2022◆11.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...