४७१/२०२२
[अवसर,अनुग्रह,आपदा,प्रशस्ति,प्रतिष्ठा]
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✍️ शब्दकार©
🏞️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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☘️ सब में एक ☘️
बार-बार आते नहीं,शुभ अवसर हे मीत!
लाभ उठा लेते वही, पा लेते हैं जीत।।
कब ललाट-लिपि खोल दे,शुभ अवसर का द्वार
सदा ध्यान रखना सखे,जीवन का उपहार।।
गुरु जननी पितु का सदा,मिला अनुग्रह नेह।
जीवन में उसके रहे, उत्कर्षों का मेह।।
जन्म-जन्म के कर्म से,मिले अनुग्रह नित्य।
मानव कवि होता तभी,उगता भावादित्य।।
आती हैं जब आपदा,कभी न त्यागें धीर।
रहें लीन सत्कर्म में, कहलाएँ रणवीर।।
कौन आपदा से नहीं, होता है दो चार।
संघर्षों से जूझता, हो उसका उद्धार।।
पा प्रशस्ति फूलें नहीं,नहीं भटक सत राह।
तदनुकूलता सिद्ध कर,तभी उचित हो वाह।।
पा प्रशस्ति सत्कर्म से,मानवीय का मोल।
झूठा भी होता कभी, जो न जानता तोल।।
प्राण- प्रतिष्ठा से बने, पाहन ईश समान।
मात-पिता को दें वही,दे सेवा में ध्यान।।
मनुज- प्रतिष्ठा जब मिली,लिया अहं ने घेर।
नाश शीघ्र उसका हुआ,लगी न पल की देर।।
☘️ एक में सब ☘️
अवसर शुभद प्रशस्ति का,
मिले प्रतिष्ठा - फूल।
शक्य आपदा राह में,
देव- अनुग्रह न भूल।।
🪴शुभमस्तु !
09.11.2022◆6.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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