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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पाँचों अँगुली हाथ की, होतीं नहीं समान।
जहाँ काम आए सुई,वहाँ वृथा है बान।।
दिन में सूरज की प्रभा,रजनी में शशि रम्य,
उषा-लालिमा भोर में,ताने सुखद वितान।
कर्ता ने सबको दिए,करने को कुछ काम,
मूल फूल दल शाख की,सबकी अपनी आन।
सूँड़, पूँछ या पेट से, बने न हाथी पूर्ण,
आँख,दाँत,मुख,देह सँग,रखें अहमियत कान
तिनका भी भू पर पड़ा,आ जाता है काम,
जब पिपीलिका डूबती,वही बचाता जान।
मत करना अवहेलना, पड़ी धरा पर धूल,
गिर जाती जो आँख में,छिन जाती मुस्कान।
'शुभम्'सृष्टि का एक कण,उपयोगी है मीत,
मत छोटा समझें उसे,लेना मति - संज्ञान।
🪴शुभमस्तु!
20.11.2022◆7.45 पतनम मार्तण्डस्य।
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